नज़रे करम मुझ पर इतना न कर,
की तेरी मोहब्बत के लिए बागी हो जाऊं,
मुझे इतना न पिला इश्क़-ए-जाम की,
मैं इश्क़ के जहर का आदि हो जाऊं।
घायल कर के मुझे उसने पूछा,
करोगे क्या फिर मोहब्बत मुझसे,
लहू-लहू था दिल मेरा मगर
होंठों ने कहा बेइंतहा-बेइंतहा।
आपली ओळख अशी आहे की,
मनाने भोळा आणि नियत साफ
पण जर डोकं सटकल तर सगळ्यांचा
बाप
फ्री मैं हम किसी को गली तक नहीं देते तो smile तो दूर की बात है !!😜